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2012-01-04

Rebellion - विद्रोह

ज़िन्दगी को तराजू पे तोलकर
पहलुओं का साथ निभाना भूल गए
कोरे पन्ने हिसाबो से भरकर
क्यूँ रंगोँ को आज़माना भूल गए

क्या हुआ जो कुछ सवाल थे यूं
जिनका जवाब मालूम न था
आँसू जो पलकोँ तक रह गए
कभी वोह भी तो महरूम न थे

अगर आज हंसी है मुनासिब
कभी गम भी तो है झेलना
जीना तो तब जीना कहलाये
जब हो जान की बाज़ी खेलना

शिद्दत तो बस मुनाफे के लिए
हम प्यार-मोहब्बत भूल चुके
रोज़-मर्रा के बर्दाश्त में हम
शायद शिकायत भूल चुके

रोज़ समझौता करते करते
बस आधी ज़िन्दगी जी रहे हैं
आज अपने ही हाथोँ से हम
ज़हर का प्याला पी रहे हैं

क्यूँ खींचे हैं यह झूटे सरहद
और क्यूँ बेगानी डरना आज
हर रुकावट को चीर कर
हमें है मन-मानी करना आज

जो इमारतें हैं रूडी आदत की
उनकी है बुनियाद हिला देना
आज हर एक झूठी दीवार को
है हमें मिटटी में मिला देना

आज खून-पसीना बहने दो
कल ख़ुशी के आँसू रोएंगे
एक सुनहरे कल के खातिर
हम आज नए ख्वाब पिरोएँगे

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